#बन्दरों_की_ज़िद .......... ......... एक बार कुछ वैज्ञानिकों ने एक बड़ा ही मजेदार प्रयोग किया। उन्होंने 5 बन्दरों को एक बड़े से पिंजरे में बन्द कर दिया और बीचो-बीच एक सीढ़ी लगा दी जिसके ऊपर पके केले लटक रहे थे। जैसा कि अनुमान था, एक बन्दर की नज़र केलों पर पड़ी, वह उन्हें खाने के लिए दौड़ा, पर जैसे ही उसने कुछ सीढ़ियां चढ़ी उस पर ठण्डे पानी की तेज धार डाल दी गयी और उसे उतर कर भागना पड़ा।
पर वैज्ञानिक यहीं नहीं रुके, उन्होंने एक बन्दर के किये गए प्रयास की सजा बाकी बन्दरों को भी दे डाली और सभी को ठण्डे पानी से भिगो दिया।
बेचारे बन्दर हक्के-बक्के एक कोने में दुबक कर बैठ गए, पर वे कब तक बैठे रहते, कुछ समय बाद एक दूसरे बन्दर को केले खाने का मन किया.और वो उछलता कूदता सीढ़ी की तरफ दौड़ा। अभी उसने चढ़ना शुरू ही किया था कि पानी की तेज धार से उसे नीचे गिरा दिया गया।
और इस बार भी इस बन्दर की गलती की सज़ा बाकी बन्दरों को भी दी गयी यानि सबको फिर ठंडे पानी से भिगाया गया। एक बार फिर बेचारे बन्दर सहमे हुए एक जगह बैठ गए। थोड़ी देर बाद जब तीसरा बन्दर केलों को खाने के लिए लपका तो एक अजीब घटना हुई।
बाकी के बन्दर उस पर टूट पड़े और उसे केले खाने से रोक दिया, ताकि एक बार फिर उन्हें ठण्डे पानी की सज़ा ना भुगतनी पड़े। अब प्रयोगकारों ने एक और मजेदार चीज़ की।
अन्दर बन्द बन्दरों में से एक को बाहर निकाल दिया और एक नया बन्दर अन्दर डाल दिया। नया बन्दर वहां के नियम क्या जाने। वह तुरन्त ही केलों की तरफ लपका।
पर बाकी बन्दरों ने झट से उसकी पिटाई कर दी। उसे समझ नहीं आया कि आख़िर क्यों ये बन्दर ख़ुद भी केले नहीं खा रहे और उसे भी नहीं खाने दे रहे।
ख़ैर उसे भी समझ आ गया कि केले सिर्फ देखने के लिए हैं, खाने के लिए नहीं।
इसके बाद प्रयोगकारों ने एक और पुराने बन्दर को निकाला और एक और नया अन्दर कर दिया।
इस बार भी वही हुआ नया बन्दर केलों की तरफ लपका पर बाकी के बन्दरों ने उसकी धुनाई कर दी।
इस बार मज़ेदार बात यह हुई कि पिछली बार आया नया बन्दर भी धुनाई करने में शामिल था, जबकि उसके ऊपर एक बार भी ठण्डा पानी नहीं डाला गया था।
प्रयोग के अन्त में सभी पुराने बन्दर बाहर जा चुके थे और नए बन्दर अन्दर थे जिनके ऊपर एक बार भी ठण्डा पानी नहीं डाला गया था पर उनका स्वभाव भी पुराने बन्दरों की तरह ही था।
वे भी किसी नए बन्दर को केलों को नहीं छूने देते।
हमारे हिन्दू समाज में भी यही स्वभाव देखा जा सकता है। मुसलमानों के शासन काल में मार खा खाकर हमारे देश में भी हिन्दुओं की एक ऐसी प्रजाति विकसित हो गई है जो किसी भी कीमत पर अपने अन्दर के स्वाभिमान को जागृत नहीं होने देना चाहती और अगर कोई भी ऐसा प्रयास करता है उसे मूर्ख साबित करने में सारे उन्हीं बंदरों की तरह लग जाते हैं।
इस मनोवैज्ञानिक प्रयोग का, गांधी के तीन बन्दरों से सीधा सीधा लेना देना है!
बन्दर बने हुए सभी हिन्दुओं से निवेदन है कि, आत्म चिन्तन कर सकें तो शीघ्र करें वरना बहुत देर हो जाएगी।
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-Sanjay Singh