बचपन की वो यादे हंमेशा मंडराती है मेरे आसपास
आ जाती है रोनक चहेरे पे जैसे में पहुंच जाती हूं बचपन मे
मां की ममता पिता का लाड़ प्यार भाई की मजाक मस्ति
खो जाती हूं बचपन की गलियों में याद रूप एक दूसरे के साथ
पढ़ाई करना दोस्तो के साथ धींगा मस्ती करना पूरे दिन हँसते रहना
त्यौहारों की रौनक से भरा उत्साहित माहौल में सब के साथ जाना
सहेलियों की खिलखिलाट से चहकता महोल्ला खुशियों की सौगात
परिवार की एक जुटता से जैसे प्यार की नदियों का प्रवाहित बहना
न कोई चिंता न कोई अनबन बिना परवाह किये हँसते खेलते रहना
जब याद आता है ये खो जाते है हम जैसे लौट आया वापस बचपन
-Shree