कुछ आखों का था
कुछ काजल कुछ बिन्दी का था
होठों की लाली गोधुली सी थी
तो कभी उगते सूर्य की लालिमा सा था
उसका पहला दीदार कुछ ऐसा था
हँसी तितली के पंख,चेहरा गुलाब सा था
नथनी का छल्ला,चाँद पे चकोर सा
गालों का नूर सुबह की ओस की बूँद सा था
और मैं...
असर से थोड़ा मदहोश थोड़ा बहका सा था
-Het