कल ना मेरे प्रेम से थोड़ी सी नोक जोंक हो गयी....
उन्होंने बड़े ही प्यार से पूछ लिया हमें,
“क्या क्या पाबंदियाँ हैं अब जब हमने हमेशा साथ रहेगा का सोच लिया हैं?”
और हमारे मुँह से कुछ यूँ शब्द सरक से गए,
“प्यार करने से पाबंदियाँ लगती हैं तो वो शायद प्यार नहीं...
अगर आप हमसे पाबंदी की उम्मीद करेंगे तो शायद आपने मोहब्बत ही नहीं की हमसे।”
और यही हमारी कहानी शुरू होने से पहले ही ख़त्म हो गई....
क्या सच में मेरी बात ग़लत थी ?
स्वाभाविक रूप से हम सिर्फ़ इतना मानते हैं कि साथ होने से और प्यार का इकरार करने से प्यार और हमारा साथ बड़ा ही ख़ूबसूरत सा हैं।
पर क्या आप अपने प्रेमी पे पाबंदियाँ लगाते हैं या वो आप पे ?
अगर हाँ ,
तो क्या ये प्रेम हैं?
प्रेम बंधन में बाँधने का नहीं ,
हर बंधन से मुक्त होने का मार्ग हैं ।
कृष्ण जी कहते हैं,
“प्रेम और भक्ति में कोई फ़र्क़ नहीं। भक्त प्रेम भक्ति से ईश्वर का नाम लेते हैं और प्रेमी प्रेम में प्रेमिका का नाम लेते हैं।”
शायद प्रेम जैसे बड़े शब्द और भावना को समज सकूँ इतनी बड़ी या समज़दार नहीं हूँ।
पर फिर भी इतना ज़रूर समज पाई हूँ कि किसी को बाँध कर अपना नहीं बनाया जा सकता।
~पर्ल महेता