"पुत्र की बेदना"
माँ। तुम्हारी आँचल के छांव की
मैं लाज रख न सका।
पिता। तुम्हारे अरमानों पर
खरा मैं उतर न सका।
मैं भी सपनों की लड़ियाँ गूँथी थी
सपनो के माँथे को चूमा था।
ख्वाहिशों के चरम डुलाया था
मेरी भी इच्छाऐं चमकी थीं।
तुम्हारे चरणों के आईने में
मैं खुद को देखा था।
मेरी प्रिय माँ। मेरे प्रिय पिता।
तुम्हारे खून ने जो मुझको
अनगिनत प्रश्न दिए
उन प्रश्नों के हल का
निरंतर मैं प्रयत्न किया।
मैं शर्मिंदा हूँ पिता।
ऐसे मुझको मत देखो
मेरी आत्मा मुझको धिक्कार रही
अंदर मेरे प्राण तंत्र चित्कार रहे
माँ तुम आंसू मत टपका
तेरी छाती के बूँद बूँद
पिघले लोहे जैसे दिल मे लगते हैं
प्रिय पिता।
अभी मैं हारा नही हूँ
तुम्हे गर्व करने के लिए
मेरे पास अभी
तुम्हारे आशीष की पूंजी काफी है।
किताब-'सच के छिलके' कविता संग्रह से
लेखक-शिव भरोस तिवारी 'हमदर्द'