तहरीर अधूरी है ख़त की,
लफ़्ज़ों की साज़िश लगती है..!
गुज़रे पल हैं अब साथ नहीं,लम्हों की साज़िश लगती है..!!
अंजान शहर की गलियों में,
एक नाम जरा बस पूँछा था,
बदनाम हुई उल्फत अपनी,लोगों की साज़िश लगती
है..!!
दिल अपना पराया लगता है,
धड़कन बेगानी लगती है,
रहती कुछ कुछ सी बेचैनी, साँसों की साज़िश लगती
है..!!
रूहें आपस में खोयी हैं,
दो जिस्म भी उलझे बैठे हैं,
कुछ रिश्तों की दीवारें अभी,रस्मों की साजि़श लगती
है!!!
" तन्हाई "...