अल्हड़, मस्त, अलबेली
सपनों से भरे नैनों से
कभी-कभी वो करे अठखेली।
बन तितली इत-उत डोले,
कभी बन भ्रमर गुंजन बोले,
पुष्प सरीखी धवल-कोमल सी,
सुगंधित सुवासित कली सी,
एक लड़की उमंग भरी सी।
स्वप्न सलोने सजाने वाली,
मोहक मुस्कान बिखेरने वाली,
अपने चंचल चितवन से
आशा के दीप जलाने वाली,
वो लड़की कहाँ चली गयी?
न जाने वो कहाँ खो गयी?
लेती मध्यम-मध्यम सिसकियाँ,
जिम्मेदारियों के नीचे दब गई।।"
-Sakhi