आज फिर तन्हाई पास आयी और बोली
क्या फिर तुझे आज उसकी याद आयी है
हम कुछ ना बोले ख्यालों में ही गुम ही रहे
इस दिल पर फिर यादों ने दस्तक लगाई है
एक उफान सा उठता है सीने में इस क़दर
या रब्बा ये कैसी इश्क़ की बे - इंतेहाई है
जिसे टूटकर चाहा था और प्यार किया था
आज उसने ही इन आंखों में नमी लाई है
तू गैर का दामन थाम लेता तो भी सुकून था
साथ होकर मेरे प्यार को तूने दी रुसवाई है
जब ज़माना लगा रहा था तोहमतें हज़ार
तू भी एक था जिसने मुझपर उंगली उठाई है
-अनुभूति अनिता पाठक