My Satire Poem..!!!
जिस ज़ुबान पर बंदिश थी
उसने इतना तीखा लिखा कि
जिंसें पढ़कर समाज के मुँह
का ज़ायक़ा तक बिगड़ गया
इतिहास गवाह है हर दौर में
क़लम के गौहर फ़न दिखाए
बदहवासी जुर्म-साज़िशें तो
हिस्सा है हर एक हुकूमतों का
दरअसल हाकिम का होना भी
नशा हैं जाम की बूँदों की तरह
पिया इसे जिस किसी ने बहका
अपने किरदार-ओ-शख़्सियत से
पर कुछ इन्साफ़-पसंद भी हाकिम
हिस्सा रहे है इतिहास के पन्नों पर
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