My Wonderful Poem...!!!
बूँ-ओ-ख़ुशबू अच्छे ओर बूरे आमाल
हर एक कमँ कीं अपनी अपनी होतीं है
ख़ूबसूरती भी तो ख़ूबसूरती तब ही
जब बद-सूरतीं से मुक़ाबिल होतीं है
रब ने अच्छाई-बुराई साथ ही बनाईं
बंदे को अकल-ओ-समज से परखनी है
फ़लसफ़ा हर आमाल का रंग लाता है
दिक़्क़त व बरकत बंदे को ही झेलनीं है
हर भला-बूरा अंजाम भी दस्तक देता है
बंदे को तय करना है कि किसे पाना है
प्रभु की मस्लेहत में रियायत कभी नही
बीज़ बबूल बोए तो आम कहाँ से पाए
अंत: प्रभु बंदे को ही इख़्तियार दिए है
राह सही या ग़लत पसंद हमें करना है।
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