My Meaningful Poem...!!!
फिर यूं हुआ कि खुशबू
तक भी चुभने लगी मुझे
देखा जो एक मासुम-से
फूल को फूल बेचते हुए
चौ-राहों पर फटें लिबास
में हर राहगीरों को मिन्नतें
करतीं बिना जूतों के नँगे
पाँवों से गर्मी भी सहतीं हुई
मासुम फ़ुल-सी वह नन्ही
बच्ची ख़ुशबू को बेचतीं हुईं
तंगहाली भी क्या अजीब
शैह है कि चिटकती धूप भी
सिकन बच्ची के चेहरे को
छूँने की जूरँत तक न कर पाईं
वही आलीशान कार-से वही
उम्र की बच्ची इसे तकती रही
प्रभु तेरी लीला भी अपरम्पार
कब किसे क्या दे तूँ ही जाने
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