इसे गोबर का कीड़ा कहते हैं, ये कीड़ा सुबह उठकर गोबर की तलाश में निकलता है और दिनभर जहाँ से गोबर मिले उसका गोला बनाता रहता है ।
शाम होने तक अच्छा ख़ासा गोबर का गोला बना लेता है । फिर इस गोबर के गोले को धक्का मारते हुए अपने बिल तक ले जाता है, बिल पर पहुँचकर उसे अहसास होता है कि गोला तो बड़ा बना लिया लेकिन बिल का छेद तो छोटा है, बहुत कोशिश के बावजूद वो गोला बिल में नहीं जा सकता।
सोचने की बात है कहीं हम सब भी गोबर के कीड़े की तरह तरह तो नही हो गए हैं।
सारी ज़िन्दगी चोरी, मक्कारी, चालाकी, दूसरो को बेबकूफ बनाकर धन जमा करने में लगे रहते हैं,
जब आखिरी वक़्त आता है तब पता चलता है के ये सब तो साथ जा ही नहीं सकता ।
-Sanjay Singh