My Wonderful Poem..!!!
यह कोई ओर ही ताल्लुक़ होगा
ग़र थीं मोहब्बत तो मर कैसे गई
बहारें भी आ कर चल तो देतीं है
पर जातें हूए कलीँको फूल बनातीं
हिना भी तो ख़िला हुआ कलर्स देतीं
पर हस्तीं खुद की खुद मिटा भी देतीं
हौसलों की बुलंदी चोटी पर पहुँचातीं
पर चौटीं पे पहुँच हौसले भी मिट जाते
अमूमन कुदरत की बनी हर बीज़ भी
नई फ़सल पे हस्ती अपनीं ही मिटातीं
रब प्रभु अल्लाह भगवान जो भी नाम
हो पर जिस किसी भी संत ने परखा
इन्हें ज़बान अपनीं खुद ही बंध कर ली
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