ऐसे वाणी बोले जिसके द्वारा किसी के भी मन में उद्वेग निर्माण न होवे ।कभी भी ऐसा वाणी न बोले जिससे किसी के मन में उद्वेग, उत्तेजना या घृणा उत्पन्न हो जाये ।दूसरे के चित्त में उद्वेग या क्षोभ उत्पन्न कर देना ही वाणी का पाप हैं ।बोलने से पहले यह सोच लेना आवश्यक है कि क्या बोलना आवश्यक हैं ?सद् चिन्तन युक्त वाणी ही उसका तप हैं ।