My Meaningful Poem...!!!
फ़क़त अपनीं तहरीर से बयान हो नही सकता वर्ना क्या कुछ हो नहीं सकता
ए प्रभु पालनहार फ़क़त एक तूं है जो
सिर्फ़ लफ़्ज़ों में अदा हो नहीं सकता
आँखों में ख़यालात में साँसों में बसा है
चाहूँ तो भी मुझ से जुदा हो नहीं सकता
जीना है तो ये जब्र भी सहना ही पड़ेगा
क़तरा हूँ समुंदरसे ख़फ़ा हो नहीं सकता
हक़ीक़त की बुनियाद संगीन तो है पर
जलवा तेरा सब से जप्त हो नही सकता
हदों से महदूद रसाई तेरी नामुमकिन है
बाँ हद परवरदिगारी तेरी हो नही सकतीं
तूँ चाहें उसे नवाज़ें चाहें उसे मिटा भी दें
अदा तेरी समजो के दायरों में क़ैद हो ..
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