गाँव से निकलकर शहर तक पहुँच तो गए,
साथ पहुँच न पाया तो,
वो अपनापन, वो सादगी,
वो भोर, वो साँझ,
वो दिया-बाती का समय,
वो निंबोली-शहतूत के फल,
वो मटके-सुराही का पानी,
वो आम का पना, वो दादी की कहानी।
शहर के शोरगुल में,
अब साथ मेरे सिर्फ मौन रहता है।
- नूपुर पाठक