My Wonderful Poem..!!!
वो दुश्मन-ए-जाँ जो जान
से भी ज़्यादा प्यारा था कभी
अब किस से कहें कि कोई
हमारा भी अपना-सा था कभी
दिल की दस्तक पर जान तक
अपनीं न्योछावर करता था कभी
बदलीं के बादल-सा आवारा
मन का मोज़िला पगला था कभी
बरसते बारिशों में सिमट कर
पलट कर देखता कोई था कभी
बहकते कदमों को गिरते गिरते
सँभाल सहारा देता कोई था कभी
अपने-आप में ही प्रभुजी-सा
पाक-दामनों-सा फ़रिश्ता था कभी
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