पहले भी यही दौर था
आज भी यही दौर है।
पहले चीरहरण सभाओं में होता था,
अब तो हर जगह..... दबावों में होता है।
दरिंदगी जागती है, न्याय सोता है।
पहले महाभारत होती थी,
अब सियासत होती है।
खुदग़र्जों की दुनिया में
मुर्दे हाजिर है।
जिन्दें गैरहाजिर है।
न्याय के लिए अथाह दर्द सहना ही होगा,
क्योंकि गैरत तलवारें खींचती थी,
बेगैरत सलवारें खींचती है।***************************
-Suneeta Gond