#क्षितिज तक फैली हरीतिमा
हे आकुल नयनों की विश्रांति,
तुममें है शिशु की धवल कांति,
तु रुदित हृदय के मृदुल राग,
सुप्त आत्मा के तुम जागृत गान,
औ' व्याकुल मन के सुमधुर तान
तु ही क्षुधित धरती के अमृत प्राण,
तु नव जीवन के मृदुल वाद्य,
औे' प्रेरणा के अमर्त्य आशीर्वाद;
हे विराट सत्ता के प्रकट रूप,
तु ही जगदीश्वर के झांकी स्वरूप,
ऐ जीवनदायिनी मातृ प्रकृति,
तु है नित नूतन वरदान सृष्टि की,
तेरा रहे सर्वदा यश गान,
हे हरीतिमा,तुम्हें प्रणाम।