Hindi Quote in Poem by Pragati Gupta

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पूर्ण-विराम से पहले
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उम्र के अंतिम पड़ाव तक
जो प्रेम मौन चिरप्रतीक्षित रहा,
रूबरू जब भी हुआ यह,
सजल नयन मिलता रहा...
जितना गहरे हम मौन में उतरते गए
उतने ही कहे-अनकहे भाव
निःशब्द संग-संग चलते रहे ...
सुदूर कहीं से हमारा
सलामती की दुआएं पढ़ना
एक दूजे से नही छिपा था,
बहते अश्रुओं के धारों पर
बांध प्रेम का बांध कहीं गहरे तक
एक दूजे को हमने महसूसा था..
निमित्त प्रेम के अधीन आज
पुनः हम सामने खड़े थे,
देख आँखों के ढलके आंसू,
बांध न पाई अँखियाँ उस बांध को
जिस बांध पर हम दोनो खड़े थे..
'पूर्णविराम से पहले' हमारा पुनः मिलना
उस निमित्त अधीन चिरप्रतीक्षित
प्रेम के उपहार का हिस्सा था
जिसकी अनुभूतियों के छावं तले
शेष यात्रा को हमें
अब संग-संग तय करना था...
प्रगति गुप्ता

पूर्ण-विराम उपन्यास की बुक-मार्क कविता

Hindi Poem by Pragati Gupta : 111576026
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