Hindi Quote in Poem by shekhar kharadi Idriya

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#विधवा

विधवा की ऐ कैसी विवशता, कैसी विडंबना ?
सदियों की प्रथाके नाम पर , परंपरा के नाम पर
स्त्री का शारीरिक, मानसिक शोषण होता रहा ।

जबरन श्वेत वस्त्र पहनाकर ,
केशों का गजरा उधेड़ दिया
माथें का सिंदुर मिटा दिया
काया का शृंगार हटा दिया
रूप का शीशा तोड़ दिया
पति की यादें जला दि ,
समाजनें अपशुकन मान लिया
लोगोंने सरेआम ठुकरा दिया
स्वजनों ने खुल्ला धुत्कार दिया
असहनीय,अकल्पनीय शब्दों से
अविश्वसनीय निर्दयी बर्ताव से
कलंके के छीटें छिड़ककर ,
धृणा का हलाहल पीलाकर
डाकन-चुड़ैल का नाम देकर
संबंधों में लकीरें खींचकर ,
कठोर नियमों में जकड़कर
खुशियों पर ग्रहण लगाकर
देखके प्राण सिसकते, बिलखते रहें ।


विधवा की ऐ कैसी विवशता, कैसी विडंबना ??
सदियों के प्रथाके नाम पर , परंपरा के नाम पर
स्त्री का शारिरिक, मानसिक शोषण होता रहा ।

जीवन नीरस-सूखा-बंजर बनाकर
दुःख के मातम में छोड़ कर ,
व्यथा के सागर में डूबो कर
कांटों के पथ पर चलाकर
नैनों के दृश्य में उलझाकर
भीतरी द्वंद्व में भटकाकर
इच्छा के मझधार में बहाकर
हृदय की भावना सूखाकर
रक्त का प्रवाह रोककर
नाड़ी को सिथिल बनाकर
कष्टों के भंवर में छोड़कर
सारे बंधनों को भूलाकर
अस्तव्यस्त त्रस्त करके ,
पग पग पर व्यवधान ड़ालकर
उसका सारा जीवन स्मशान बना दिया ।


विधवा की ऐ कैसी विवशता कैसी विडंबना ???
सदियों के प्रथाके नाम पर, परंपरा के नाम पर
स्त्री का शारिरिक, मानसिक शोषण होता रहा ।

( २०/९/२०२० )

--© शेखर खराड़ी

Hindi Poem by shekhar kharadi Idriya : 111574149
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