# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .विजय "
*छंदमुक्त कविता *
विजय का स्वाद ,मीठा लगता ।
विजय से व्यक्ति ,खुशहाल लगता ।।
अच्छे कर्म ही ,विजय श्री दिलवाते ।
बुरे कर्म ,मिट्टी में मिलाते ।।
विजय व्यक्ति का ,श्रेष्ठ आभूषण होता ।
अच्छाईयों के आगे ,बुराईयाँ सदा धुटने टेकती ।।
सत्य की ही ,संसार में विजय होती ।
असत्य की सदा ,हार ही होती ।।
राम सत्यवादी थे ,इसलिए विजयी हुए ।
रावण असत्यवादी था ,इसलिए धूलधूसरीत हुआ ।।
आज भी हम रावण ,का पुतला जलाते ।
श्रीकृष्ण सत्यवादी थे ,इसलिए विजयी हुए ।।
कंस असत्यवादी था ,इसलिए पराजीत हुआ ।
विजय श्री कर्मठ ,को गले लगाती ।।
-Brijmohan Rana