मैं नहीं चाहता कि मैं तुम लोगों की तरह कातिल बनू..
मैं हर उस बात का हिसाब लूंगा जो पिछले 15 सालों से आज तक कुछ ऐसे मामले हुए है जिनका अभी तक जानता को इन्साफ नहीं मिला क्योंकि उसी जानता में मैं भी शामिल हूं जहां अपनों को खोने के गम में कल तक इन्साफ की आस के इंतज़ार में था... लेकिन कानून की मंदगति ने मेरे सब्र को तोड़ दिया..
मेरा ही नहीं ना जानें इस शहर में कितने ऐसे लोग है जो कानून पर विश्वास रख के घुट घुट के जी रहें है एक ज़िन्दा लाश की तरह.. लेकिन मैं ज़िन्दा लाश नहीं बनना चाहता था.. इसीलिए लिए मुझें ये कदम उठाना पड़ा...
(मंत्री, कमिश्नर, एसीपी, एसपी सब एक दूसरे को देखते है )