आज फिर से मन उपवन में पुष्प खिला है ...
शायद यें असर उस इतवार का है ...
जों वर्षो बाद आज फिर से आया है।
इस पुष्प कीखुशबू से मन है कि
बावरा हुआ पड़ा है ...
उसकी अठखेलियों में मैं भी गोते लगा रहा हूं...
शायद यें असर है उस इतवार का ...
जो वर्षो बाद आज फिर से आया है।
लों फिर से उन पराठों का स्वाद
ताजा हो आया है ...
जो मां हर इतवार बनाया करती थी ...
पहले निवाले पर सिर पर हाथ फेरा करती थी ...
अब पेट तोभर जाता है...
पर इस मन को कैसें समझाऊँ ...
जो माँ के पराठों में अटका पड़ा है ...
शायद यें असर उस इतवार का है ...
जो वर्षो बाद फिर से आया है।
-Vaishnav