कोई चाहे वेसा मीठा नहीं बोल पाती हू मैं
क्योंकि मुझे शब्दों से मुकर जाना नहीं आता
एब ईतना ही है कि सच बोलती हु मैं
अब इससे ज्यादा सुधर जाना नहीं आता
मुकर के सच से जूठा जहाँ बनाना नहीं आता
छोड़ देता होंगा कोई अपना इमान किसी वजह से
क्या करु मुझे खुद की नजरो से गिर जाना नहीं आता
कहा केह रही हूं अच्छी हूं मैं बूरे हो तूम
मुझे बस तूमसा हो जाना नहीं आता
मुकर के सच से जूठा जहाँ बनाना नहीं आता
- जिन्दगी