#गुप्त
कर्मो की बनावट जो गुप्त बन जाए,
जमीर तुम्हारा तुमसे ही नजर ना मिला पायें ।
कितनें झूठ बोलोगे ,
नजर से सब बयां होता है ।
इस गुप्त से कब भला होता है।
बंद किताबों को खोल कर तो देख,
समां फिर कितना सुहाना होता है।
जो किस्मत में है वों जरूर अदा होता है।
वों जीना क्या ,
जो घूंँट घुट - घुटकर लिया,
जिंदगी तो जिंदादिल जिया करते है।