चलती हुई ट्रैन से वह बाहर देखती रही..
और बारिश की बूंदे उसपे गिरती रही...,
कुछ दर्द सा था उन बेखोंफ आंखों में..
जो में ना जान सका उसके दिदारो से...,
कुछ कहती रही वो उड़ती हुई ज़ुल्फ़ें..
पर में उस जोंखो की अनकही बात समझ न पाया...,
कुछ सुना रहे थे वो भीगे होठ उसके..
पर वो लफ़्ज़ों का दर्द में सुन ना पाया...
~दिव्य त्रिवेदी