एक छाते के नीचे
चल रहे थे हम दोनों
दायां कंधा भीगा था मेरा
और बायां कंधा तुम्हारा भी
मैं थामा हुआ था छाता
तुम थामी थी मेरे हाथों को
सड़क से नज़र चुराकर हम
मिला रहे थे नज़र आपस में
तभी हवा के एक झोंके ने
उड़ाकर दुप्पटा तुम्हारा
मेरे कांधे पर ला दिया
लगा मानो जैसे बारिश की आग में
हम सात फेरे ले रहे हो।
---अनुराग