# आज की प्रतियोगिता "
# विषय .अप्रचलित "
# कविता ***
बुराई अप्रचलित है ,उसे न किया करें ।
किसी के दिल को ठेस लगे ,ऐसा काम न किया करें ।।
मानव दिल नाजुक ,पल में विचलित होता ।
बुराई कर पाप का ,भागीदार न बना करें ।।
अच्छाई और बुराई तो ,मानव के लक्षण है ।
उसे समझ सोच कर ,ही उपयोग किया करें ।।
जैसी सोच होगी ,वैसा ही व्यवहार करेगा ।
अपनी सोच को ,बदनाम न किया करें ।।
प्रेय ईश्वर का दिया ,अनमोल खजाना है ।
उसे हर किसी को ,आपस में बाँट निहाल किया करें ।।
मरने के बाद ,चार दिन में दुनियाँ भुल जायेगी तुम्हें ।
अपने को हमेशा यादों में ,सजाने का कार्य किया करें ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।