भारत वतन भाषाओ का महासागर
भाषा ही नही कलाओ का महानगर
इसके लिए कुर्बानी काबुल करे हमारा जिगर
रामजी की मर्यादा का यह स्थापन स्थल
कृष्णजी की लीलाओ का यह पवन मण्डल
हर्ष समाहित प्रभुता , वतन नहीं... हैं हमारा मंदिर
कवियों की लेखनी साहित्य ज्ञान युक्त यहां क़लम
कवीर , सूरदास , सूर्यकांत , जयशंकर, दुष्यन्त
जिनका भी जिक्र हो सबका कौशल अनंत
वीरो का यहां हिम्मत ए जज्बा
किसीका हक मारकर नहीं जमाते रुतबा
भारत ही हैं मेरा धर्म
इसी के लिए हैं मेरा कर्म
ढ़ाल हूँ मैं ...लड़ने के लिए तैयार इसके लिए मैं
इसीका प्रतिनिधि हूँ ....विनम्र मैं