कल रात मेरी किताबों की शेल्फ से एक लड़की बाहर निकल आयी.जाड़ों की रात थी मै अपने लिहाफ मे लेटा था.
सांवली थी उसकी थोड़ी पर तीन काली बिंदियां कानो मे बड़े बड़े झूमके लटक रहे थे. लम्बी चोटी मे फिरोज़ी सरारे और सफ़ेद कुर्ते मे उसकी देहि चमक रही थी रात चांदनी थी.
घर मे रखे हर सामान को गौर से देख रही थी जैसे कभी ये कुछ देखा ना हो सजावट की चीजें ज्यादा उठाती, बैठक के कमरे मे कुछ लकड़ी के दौड़ते घोड़े टेबल पर रखे थे, बगल मे एक गुड़िया सजी थी उस गुड़िया को उसने अपने हांथो मे उठाया और मुस्कुरा कर देखने लगी. देखते देखते खाने की टेबल तक आगयी वहीं अचार की बरनी रखी थी छोटी बरनी उसकी हथेली मे समा गयी. उसने बरनी का ढक्कन हटाया बड़े आश्चर्य से उसे अपनी नाक तक लायी, मुस्कुराई... और अपनी ऊँगली से थोड़ा अचार चाट गयी, स्वाद के मजे मे शायद उसकी फिरोज़ी चुन्नी वहां रखे एक फूलों के गुलदान मे फंस गयी.
गुलदान गिर जाता है. गुलदान के गिरने से एक छनाक की आवाज़ आती है. पल भर को सन्नाटा हो जाता है. फिर पायलों की छमक से तेज़ चलने की आवाज़ आती है और वो फिर उन्ही किताबों मे खो जाती है
सुबह जब मै अखबार पढ़ रहा था तो देखा अचार की बरनी गायब थी ये सपना था की सच.कल रात मेरे सपने मे एक लड़की आयी थी.