मुसाफिर हूं ! मंजर हूं
मुसाफिर हूं! मंजर हूं
राह पर चल रहा हूं मंज़िल तेरी तलाश में।।
कभी सड़क के कभी समुद्र के किनारे बैठा रहता हूं! तेरे इंतज़ार में..!मुसाफिर हूं! मंजर हूं
एक दिन मिल जाएगी मुजको, तु ये मंज़िल इतना तो विश्वास है! खुद पे भरोसा है,मुसाफिर हूं! मंजर हूं
में उलझना नहीं चाहता हूं! तुजसे जिंदगी, क्युके मेरे उसुलोने मेरे संस्कारो ने मुझे बांध रखा है, वरना मेरे हिम्मत की तो लोग मिसाले देते है! मुसाफिर हूं! मंजर हूं
अकेला चलता हूं, खामोश हूं, इसका ये मतलब नहीं के टूट चुका हूं, खुद पर भरोसा इतना है, मुझे जिंदगी के "स्वयमभु" अपनी राह बना सकता हूं, मुसाफिर हूं! मंजर हूं
अश्विन राठोड
"स्वयमभु"