My New Poem...!!!!
मोहब्बत का क़ानून अलग है साहब
यहाँ अक्सर वफ़ादार सज़ा पाते हैं
बेवफ़ा तो हरजाई सनम़ कहलाते हैं
दस्तूर-ए-उल्फ़त में आहें तो भरते हैं
🔥 आग़ भी सीने में जलाएँ रखते हैं
चारों पहर में लव शमादान में जलाते हैं
सिलवटें भी जिगरा में समेटे हूएँ रहते हैं
लबों से पर उफ़्फ़ हरगिज़ नहीं करते है
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