तेरे आंगन के सामने एक पीपल का पेड़ था,
उस पीपल के पेड़ में एक खुबसूरत झूला था,
रोज सुबह झुला जुलने में आता था,
झुला तो गगन चुम रहा था,
पर निगाहों से तुम्हें देखता था,
लहराती ज़ुल्फो ने दिवाना कर दिया था,
होठों की मुस्कान ने पागल कर दिया था,
एक दिन में झुला जुलने आया,
पर निगाहों से तुम्हें खोज रहा था,
तुम मेरे सामने आएँ महक उठी महोब्बत मेरी,
फ़िर देखा तुम्हें साथ में किसी और के साथ,
नज़ारा देख कर में तो टुट ही गया,
फ़िर सोंचा कि हमारे नसीब मे नहीं था,
पीपल पेड़ में आशियाने बहोत थे,
मेरा पंछी किसी और का था,
मुझे अब आसमान में अकेले उड़ना था,
पर ज़हन में यह अफसोस क़ायम रहेगा,
काश उनसे एक बार दिल की बात कहें देते,
अगर मगर की उलझन से ना डरते,
जब वो सामने देखते थे तो हम नज़र झुका लेते थे,
काश वोह नज़र ना झुकाइ होती तो सायद वोह समज जाते,
आज भी पीपल का पेड़ है,
आज भी वोह खुबसूरत झुला है,
बस मेरी महोब्बत नहीं है,