‘जानते हो जब हम पहली बार किसी का हाथ पकड़ते हैं, तो जैसे एक नए जीवन का सिरा पकड़ते हैं, एक कहानी का पहला वाक्य पढ़ते हैं, एक किताब का पहला पन्ना खोलते हैं। तभी हम जान पाते हैं कि एक भरोसे से किया गया पहला स्पर्श केवल छूने का सुख नहीं होता, उसमें किसी नई दुनिया में प्रवेश की जिज्ञासा, कौतुहल और उससे पैदा हुई थरथराहट भी होती है.’
ऐसा कहते हुए दीपांश की आँखों का खालीपन भरने लगा था।
‘इसलिए प्रेम की किसी भी स्थिति में वह पहला स्पर्श, उसका सुख, उसका एहसास सदा के लिए हमारे साथ रहा आता है, जिसके सहारे हम अनगिनत स्पर्शों के पुल खड़े करते हैं। दरसल वह पहली छुअन नींव है, धरोहर है, उस रिश्ते की। एक सुख की आश्वस्ति है, जो बार-बार स्मृतियों में आकर फिर-फिर छूने को उकसाती है। शायद यही वो आलम्ब है, जो उम्र के धुंधलके में भी स्मृतियों में घुलकर हमेशा आनन्द देता है। इसी के सहारे मैं बार बार उस निर्वात में तिर जाता हूँ, सच मानो वहाँ उस स्पर्श के अलावा कुछ भी नहीं होता.’
उसकी बातों की सरसता में हम किसी अदृश्य झरने की आवाज़ सुन रहे थे।
‘पर यही स्पर्श बहुत रुलाता भी है। उस हाथ के छूट जाने पर सारे पुल ढह जाते हैं। इस एक स्पर्श के सहारे मन कितनी बातें बिना कहे-सुने ही समझ लेता है।’...