राधा प्यार की मुरत थी तो
रुक्मिणी त्याग की मुरत थी।
दोनों के बीच कान्हा की दुविधा थी।
एक को पा न सके और
एक को छोड़ न सके।
मीरा बनना भी कहा आसान था।
खुद को कान्हा में खो देना कहा आसान था।
भक्ति मीरांने भी की और राधा ने भी
राधाने भक्ति से कान्हा का प्रेम जीता
और मीरांने भक्ति से खुद कान्हा को ही जीत लिया।