" चांद "
चांद तुझे केसे छिपाऊं में बादलों के पीछे, तू अच्छा नहीं लगता बादलों के पीछे..! चांद
तेरी शीतलता, तेरी रोशनी, तेरा मासूम सा दिखना, क्या कहे तेरी खूबसूरती के बारेमे जब तू पूरा खिला होता है.! चांद
ये माना के कुछ दाग है, तेरी खूबसूरती मे, पर ये दाग ही तेरी खूबसूरती को बढ़ाते है.! चांद
चांदनी को कर देंगे तेरे प्यार में पागल ये चांद, तू "स्वयमभु" छोड़ दे यू बादलों के पीछे शर्माना..! चांद।।
- अश्विन राठौड
"स्वयमभु"