आज़ाद पंछी बनने आयी थी में
और तुमने पिंजरे का तोता बना दिया !
ऐसा तो क्या गुनाह था मेरा
जो मेरी पंख काटने को मजबूर किया ?
कहा से अब देखूं इस जहाँ को में?
जब मेरी बारी आयी तो घर का दरवाजा ही बंध हो गया !
पढ़ने की उम्र में हमेशा तेरा हाथ बटाया
ऊपर से कहते हो तेरा इस जहाँ में काम ही क्या ?
चाहे अच्छा हो या बुरा गलती तो मेरी ही होगी
जरा इतना तो बतादो तुम चाहते हो मुझसे क्या !
जिन हाथों से स्नेह की उम्मीद रखी थी
उन्ही हाथों ने आज बेड़ियों से बांध दिया !
ऐसा जनम देके तुझे क्या मिला मेरे रब?
जीने की एक ख्वाहिश थी मेरी, पता नहीं इन लोगो ने मुझे क्या बना दिया !
anjali.. ✍️