आज भी जब याद आती है वो आखिरी मुलाकात,
रात हो जाती है पहाड़।
लाख करो जतन आंख लगती नहीं,
बेरुखी तुम्हारी जँचती नहीं ।
आज भी जब आता है ख्याल तड़प उठती हूँ सोचकर,
कितना मनहूस था वो साल।
वो तुम्हारी बेहयाई की धुंध आंखों के सामने से छंटती नहीं,
बेरुखी तुम्हारी जँचती नहीं ।
कितने साल तुम्हारी राह देखी मैंने,
एक पल भी न खुद की परवाह की कभी।
तुम्हें ढूंढा इस दुनिया के हर मुमकिन कोने में
तुम्हारी कही वो बात मेरे ज़ेहन से मिटती नहीं,
बेरुखी तुम्हारी जँचती नहीं ।
मेरे कानों में निरन्तर गूंजते रहते हैं तुम्हारे कहे वो अप्रत्याशित शब्द जिन्हें मैं सपने में भी तुम्हारे द्वारा
कभी सुन सकती नहीं ,
बेरुखी तुम्हारी जँचती नहीं ।
तुमनें तो कहकर सबकुछ भुला दिया,
मेरे इतने सालों का इंतजार दो पलों में बिसरा दिया।
मेरी बेचैनी को उम्मीद की कोई वजह मिलती नहीं,
बेरुखी तुम्हारी जँचती नहीं ।
अब तो मेरी मौत के साथ ही मैं मुक्त हो पाऊँगी
प्रीत की है तो वो अब तुम चाहो न चाहो,
मैं तो मरते दम तक निभाऊंगी ।
तुम्हारी चाह मेरे दिल से निकलती नहीं ,
बेरुखी तुम्हारी जँचती नहीं ।
#बेरुखी तुम्हारी जँचती नहीं...
निशा शर्मा...