गीत
पलकों में मुझको बैठाकर,
तुम अपने मन को बहलाना।
पर यादों के दीपक से ही,
तुम अपने को मत झुलसाना।
सरहद पर जाना है मुझको ,
माँ ने पाती भेजी लिखकर।
जब पीड़ा का ज्वार उठे तो,
मत रोना आँसू लुढ़का कर।
गर्व रहे तुमको यह हरदम,
सैनिक की पत्नी कहलाना।
पलकों में मुझको बैठाकर,
तुम अपने मन को बहलाना....
तुमसे जोड़ा जबसे नाता,
फेरे सात लिए हैं चलकर।
जब-जब माँ पर संकट छाया,
वर्दी पहन चला हूंँ तनकर।।
जीवन तो जीते सब अपना,
गौरव है फौजी कहलाना।
पलकों में मुझको बैठाकर,
तुम अपने मन को बहलाना....
गोदी में जो खेल रहा है,
उसमें ही प्रतिरूप बसा है।
किंचित तुम चिंता मत करना,
हम दोनों की सही दिशा है।।
किसको कितना जीवन जीना,
विधिना को ही है बतलाना।
पलकों में मुझको बैठाकर,
तुम अपने मन को बहलाना....
पहले बेटा माँ धरती का,
फिर पति का है धर्म निभाना।
वापस लौटूंँगा मैं घर को,
विश्वासों से मत हट जाना
वीर सिपाही हूँ भारत का,
रिपु दल को है मार भगाना ।
पलकों में मुझको बैठाकर,
तुम अपने मन को बहलाना....
आने वाली पीढ़ी को तुम,
देशभक्ति का पाठ पढ़ाना।
आजादी की रक्षा करने,
उनको सच्ची राह दिखाना।
कर्तव्यों से कभी न डरना,
अधिकारों में क्या भरमाना।
पलकों में मुझको बैठाकर,
तुम अपने मन को बहलाना....
पर यादों के दीपक से ही,
तुम अपने को मत झुलसाना।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
8,जुलाई 2020