सचमुच तब बड़ा गुस्सा आता है जब कोई अधूरी बात कह कर बीच में ही छोड़ दे।
मन कहता है कि ऐसे शख़्स से पूछें तो सही कि अगर हम तुम्हारे अपने हैं तो हमें पूरी बात तो बताओ। ये अधूरी कहानी क्यों?
तो अगर प्रबोध कुमार गोविल की आपबीती (आत्मकथा भाग - 1 : "इज्तिरार" और आत्मकथा भाग - 2 : "लेडी ऑन द मून" ) आपने भी पढ़ी है तो आप भी सोचते तो होंगे-
फ़िर??? आगे???
तो पढ़िए प्रबोध कुमार गोविल की आत्मकथा का तीसरा भाग- "तेरे शहर के मेरे लोग" धारावाहिक!