क़ोरे कागज़ , कलम
और उलझन मेरी
क्या लिखुँ
दर्द, मुहोब्बत या
नफ़ासत तेरी
हर लब्ज़ मेरा
तुझसे ही जुड़ा है
कैसे लिख दुँ
इश्क़ से बग़ावत तेरी
तुम तो चले गए
मुँह मोड़कर हमसे
कैसे तुम देख पाते
आँखों की हक़ीकत मेरी
दो घड़ी रूककर
दिल का हाल पूछ लेते
चेहरा मेरा
हाँथों में लेकर
पढ़ लेते तो एक बार
सिर्फ़ तुम ही तो थे
एक ज़रूरत मेरी
- अनिता पाठक