जब उठा लेंगे नजरें तेरे हुस्न से काबिल,
बेशक बर्फ सा धीरे-धीरे पिघल जाओगे।
न कोई शिकवा न कोई गुस्ताखी होगी,
बेशक दिल से धीरे-धीरे उतर जाओगे।
ढल जाएगा चहेरे का नूर जब एक दिन,
बेशक वो पल आएगा तो किधर जाओगे?
कामयाब हो गए खुबसूरत सा धोखा दे,
बेशक वो रास्ते से गुजर उधर जाओगे?
समय किसी का भी न थमा तेरा न मेरा,
बेशक हवा सा धीरे-धीरे निकल जाओगे।
आसानी से न टूटने वाली वो चट्टान हूं मैं,
बेशक शीशे सा धीरे-धीरे बिखर जाओगे।
- हितेश डाभी 'मशहूर'