हास्य व्यंग्य कविता
विषय .मेरा नेटवर्क ।
मेरा नेटवर्क धीमी गति ,के समाचार सा है ।
कभी पूर्णिमा के चाँद की ,तरह पुरा दिखता है ।।
कभी अमावस्या के चाँद ,की तरह गायब हो जाता है ।
कभी अपनी चाल से ,कछुए को भी शरमाता है ।।
कभी बीच बीच म़े ,उखडी श्वास की तरह रुक जाता है ।
कभी पूर्ण विराम ,लेकर सो जाता है ।।
कभी नयी दुल्हन ,की तरह रुठ जाता है ।
इसके बिना अब ,जीना फीकाफस लगता है ।।
इसके बिना स्टेटस हमारा ,व्यर्थ लगता है ।
यह मूल्यवान हो तो ,हमें हमारा रुतबा महान लगता है ।।
इसके आगे भगवान के ,दशर्न बेकार लगते है ।
इसके चाव के आगे ,छप्पन भोग बेकार लगते है ।।
कलियुग का यह साथी ,प्राणो से प्यारा लगता है ।
इसके दशर्न के बिना ,प्रभात ही नहीं होता है ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।