गुजरते वक़्त के साथ हर वक़्त ख़्याल आया
कि तुम नही हो,
पर अब कभी कभी खामोश सोचती हूँ..
तो लगता है तुम ही तुम थे हर वक़्त..
ख़ुशियों से गूँजती हर हँसी में तुम थे..
गुस्से से बिलखती हर "मैं" में तुम थे..
हां सिर्फ तुम ही तो थे..
ज़िम्मेदारियों भरी धूप में,
जब थक गयी थी चलते चलते..
तब मेरी हिम्मत में हमेशा साथ थे तुम..
ज़िन्दगी की दौड़ में हर वक़्त
दौड़ती, भागती, गिरती फिर संभलती..
मुश्किलों से लड़ती हर "मैं" में सिर्फ तुम थे..
हां एक "#पिता " ही ऐसा कर सकता है..
खुद को बेचकर वो कई सपने खरीद सकता है..
हां तुम ही थे कहीं ना कहीं मुझमें
हाथ पकड़कर पास नहीं थे तुम..
पर मुझमें ही कहीं हमेशा साथ थे तुम..
चंद अल्फ़ाज़ नही बयां कर सकते लिखकर तुम्हें..
सिर्फ़ एक दिन का ख़्याल नहीं हो तुम..
मेरी पूरी ज़िंदगी का अनमोल अहसास हो तुम...