एक तरफ संसार है,
सुख दुःख, हानि लाभ से उद्देलित,
जहाँ छाँव है और धूप भी है,
सुंदर है और कुरूप भी है,
जहाँ जीव प्रकट होकर,
हो जाता है उत्तेजित,
दूसरी तरफ तुम हो,
इन सब से बहुत अलग,
ज्ञान हो, शांत अथाह समुद्र हो,
तुम ही बनाते हो ये संसार होकर सुनियोजित।
-KrishnaKatyayan