अम्मा जब नब्बे की हो जातीं हैं ....एक गीत।
नब्बे की होने को अम्मा
मचलन कैसे बची रह गई।।
नींबू,आम ,अचार मुरब्बा
लाकर रख देती हूँ सब कुछ
लेकिन अम्मा कहतीं उनको
रोटी का छिलका खाना था
दौड़-भाग कर लाती छिलका
लाकर जब उनको देती हूँ
नमक चाट उठ जातीं,कहतीं
हमको तो जामुन खाना था।।
जर्जर महल झुकीं महराबें
ठनगन कैसे बची रह गई।।
गद्दा ,तकिया चादर लेकर
बिस्तर कर देती हूँ झुक कर
पीठ फेर कर कहतीं अम्मा
हमको खटिया पर सोना था
गाँव-शहर मझयाये चलकर
खटिया डाली उनके आगे
बेंत उठा पाटी पर पटका
बोलीं तख़्ते पर सोना था
बाली, बल की खोई कब से
लटकन कैसे बची रह गई।।
-कल्पना मनोरमा
18.6.20