( सुशांत सिंह राजपूत के आकस्मिक निधन पर मन में उमड़े कुछ प्रश्न, कुछ भाव )
क्या कोई कहीं ऐसे भी ...
क्या कोई कहीं ऐसे भी
यूं तोड़कर सारी उम्मीदें चले जाता है कभी !
कितनीं ही ख्वाहिशें पल रहीं थीं अभी
कितनीं ही उड़ानों के अरमान थे अभी
कितनीं ही नई राहों से गुजरना था अभी
कितने ही नए ख्वाबों को बुनना था अभी
जुड़ी थी तुमसे हमारी कितनी ही उम्मीदें
पर कहां चल दिए तुम - यूं अपनी आंखें मूंदे
उम्मीदें थीं तुम्हें और उड़ते हुए देखने की
उम्मीदें तुम्हारे साथ अपने सपने गढ़ने की
क्या कोई कहीं ऐसे भी
यूं छोड़कर सभी को चले जाता है कभी !
जब तुम अनजान सी खाई में गिर रहे थे
जब तुम अनजान से भंवर में घिर रहे थे
जब तुम अकेले ज़हनी बवंडर में फंसे थे
जब तुम कितने ही दिनों से नहीं हंसे थे
तब क्यों नहीं तुमने थामा हाथ कोई
तब क्यों नहीं तुमने मांगा साथ कोई
तब क्यों नहीं तुम लिए हिम्मत खड़े रहे
तब क्यों नहीं तुम बस ज़रा और बड़े हुए
पर क्या कोई कहीं ऐसे भी
यूं घोंटकर जवां ख्वाब सारे चले जाता है कभी !
तुम्हारी कहां थी उम्र अभी दूर जाने की
गुम हुए लिए चाहत तारों सा नूर पाने की
तुम तो सितारा थे हमारी आशाओं का
क्यों बुझा ये दीप तुम्हारे आशियाने का
जो भी हो, जैसा भी हो, कैसा भी हो
यूं नहीं कभी कोई जान लेता है अपनी
कितनी भी मुश्किलें हो, परेशानी हो
यूं हार नहीं कोई मान लेता है अपनी
पर क्या कोई कहीं ऐसे भी
यूं खोकर अपने आप को चले जाता है कभी !
तुम तो हर किरदार को कर देते थे जीवंत
फ़िर क्यों तुमने कर लिया अपना ही यूं अंत
तुम तो खुद को अपने किरदार में खो देते थे
पर यूं खुद ही को खोकर तुम क्यों रो लेते थे
पर जाने क्यों ये मन नहीं मानता अब भी
कि सुशांत तुम नहीं रहे, ना बोलते लब भी
गर बैठे कहीं दूर देख सकते हो हमें अब भी
ज़रूर बताना दिल की बातें, मन हो जब भी
:- भुवन पांडे