नहीं ईष्या किसी ओर से।
बस काला कल आ रहा मेरी जिस ओर से
क्रोधित हूं व्याकुल हूं उस मोड़ से ।
रात अंधेरी ही थी पर दुख तो ये है । सुबह का प्रकाश नहीं मेरा,बस निशा ही मेरी है घनघोर सी।
रात का सपना रात को टूटा जो बंधा था जीवन डोर से ।
यह छोर है । वह छोर है।
दोनों ओर अन्धेरा ,
चलूँ में किस मोड पे।
नही ईष्या किसी और से ।
बस काला कल आ रहा
मेरी जिस ओर से क्रोधित हूँ व्याकुल हु उस मोड से ।
जीवन मे है तम इतना
ना लगता भय जीवनचोर से ।
रात का सपना रात को टूटा ' जो बॅधा था जीवन डोर से
तम यहां भी तम वहा भी जाऊ में किस ओर से ।
जाऊ में किस ओर से । ।