#आज की प्रतियोगिता "
# विषय .निर्दयी "
# कविता ***
लोग बड़े ,निर्दयी होते ।
उनके दिल ,पत्थर के होते ।।
पाषाण दिल में ,प्रेम नही बहाते ।
ये क्रुर ,निर्दयी ,पापी ,होते ।।
मानव के रुप में ,भेडीये होते ।
ये किसी की भी ,हत्या करते ।।
दया ये जरा भी ,नहीं करते ।
ये दानवतावादी ,ही होते ।।
ये मानव रुप में ,नरभक्षी होते ।
यही पृथ्वी पर ,भार स्वरुप होते ।।
बृजमोहन रणा ,कश्यप ,कवि ,अमदाबाद ,गुजरात ।